आखिर शहर में कितनी और माैतों का इंतजार नगर परिषद व जिला प्रशासन को… अब एक और शिक्षिका की जान गई
स्कूल से घर लौटते बांडी नदी की रपट पर सामने आई गाय, उसे बचाने के लिए गिरी तो पीछे से ट्रक ने सिर कुचला, मौके पर ही मौत
ट्रक के पहिए के नीचे आने से मीना का सिर कुचला तो सड़क पर खून ही खून हो गया। कुछ लोगों ने उस मिट्टी डाली। सवाल था कब तक बेगुनाह लोगों का खून ऐसे सड़कों को रंगता रहेगा। फोटो : दीपक शर्मा
इस हादसे का जिम्मेदार ट्रक चालक से ज्यादा नगर परिषद, गोशाला संचालक और जिला प्रशासन, क्योंकि
शहर में तीन बड़ी गोशालाएं, गोसेवा के नाम पर लाखों रुपए की सहायता और अनुदान फिर भी दो-तीन सौ गोवंश के लिए जगह नहीं
नगर परिषद की जिम्मेदारी कि वह इन्हें सड़कों से हटाए, कांजी हाउस के नाम पर हर साल लाखों रुपए चारे के नाम पर भी उठते हैं
शहर में जो लोग दूध निकालकर गोवंश को छोड़ते हैं, उन्हें पकड़ने व कार्रवाई की जिम्मेदारी भी नगर परिषद की
नगर परिषद अगर इन सब में विफल रहती है तो जिला प्रशासन को सख्ती का पूरा अधिकार, गोवंश को लेने से मना करने पर उसके पास अनुदान रोकने की सिफारिश का भी अधिकार
शहर के नागरिक भी जिम्मेदार, उनके पास जिम्मेदारों को कार्रवाई के लिए मजबूर करने का कानूनी अधिकार, लेकिन कोई आगे नहीं आता।
एडवोकेट जेठ की भी सड़क हादसे में हुई थी मौत
मृतका के जेठ एडवोकेट शिव निवास परिहार की करीब दस साल पहले नारलाई के पास बस की चपेट में आने से मौत हुई थी। उस समय वे भी बाइक से अकेले ही घर लौट रहे थे। मृतका के ससुर स्वर्गीय रामनिवास परिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व समाजसेवी थे, जिन्होंने सोजत से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ा था।
आज बूसी में होगा अंतिम संस्कार, शिक्षा विभाग में शोक व्याप्त
पुलिस ने मृतका का मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करा दिया,लेकिन शाम होने के कारण शव को बांगड़ अस्पताल की मोर्चरी में ही रखवाया है। गुरुवार सुबह शव का बूसी गांव में अंतिम संस्कार कराया जाएगा। हादसे में शिक्षिका की मौत की खबर सुनकर मोर्चरी के बाहर परिजन, रिश्तेदार व जनप्रतिनिधियों के साथ शिक्षक वर्ग के लोग जमा हो गए।
मीना का क्या कसूर, हेलमेट भी पहना, अपनी साइड पर ही थी, अचानक सामने गोवंश आया और पीछे से ट्रक के रूप में मौत
मीना के पति का कहना है कि हमेशा वह ट्रैफिक रूल्स और सुरक्षा का ध्यान रखती थी। बिना हेलमेट लगाए स्कूटी पर भी नहीं बैठती थी। कभी तेज स्पीड में भी स्कूटी नहीं चलाई। फिर भी वह सड़क हादसे का शिकार हो गई। उसका क्या कसूर था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार वह अपनी साइड पर चल रही थी। स्पीड भी धीमी थी। अचानक गाय आई तो उससे बचने के चक्कर में नियंत्रण खोया और गिर गईं। पीछे से आ रहे ट्रक के चालक ने भी उसे बचाने का प्रयास किया। उसने स्टेयरिंग घुमाया तो आगे से तो बच गई लेकिन पिछला पहिया उसके सिर पर चढ़ गया। पहिए के दबाव से मौके पर ही दम टूट गया। हेलमेट भी क्षतिग्रस्त नहीं हुआ लेकिन दबाव से खोपड़ी पिचक गई। मीना का शव अस्पताल पहुंचाने तक हेलमेट सिर पर मौजूद था।
सवाल :पूरे शहर में मुश्किल से दो-तीन सौ बेसहारा गोवंश, अगर गोशालाओं के पास इनके लिए भी जगह नहीं तो फिर उनका औचित्य क्या
गोशालाएं खोली ही गोसेवा के उद्देश्य से जाती हैं। गोसेवा के नाम पर ही लोग लाखों रुपए का दान भी करते हैं। बावजूद गोशालाओं में ज्यादातर दूधारू पशुओं को ही जगह मिलती है। सरकार अनुदान भी यह पूछकर नहीं देती कि कितनी दूध देने वाली या नहीं देने वाली हैं, तो फिर गाय के साथ यह भेदभाव क्यों। शहर में घूम रहा ज्यादातर गोवंश या तो नंदी हैं या फिर ऐसी गायें जो अब दूध नहीं देती।