सोजत के वेंकटेश ने फतेह किया माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई (8848 मीटर)
बर्फीले तूफान व कम ऑक्सीजन से पैर सुन्न हुए, छाले पड़े,
सोजत के पर्वतारोही वैंकटेश माहेश्वरी के जीवन का सबसे बड़ा 16 मई को साकार हो गया। जब उसने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर) पर चढ़ाई कर देश का झंडा उसके शिखर पर लहरा दिया। 40 दिनों के इस कठिनाई वाले सफर में कई बार बर्फीला तूफान आया, लेकिन उसने हौसला नहीं खोया।
अंतिम सिरे पर चढ़ते समय शरीर थक कर निढाल होने की कगार पर था, फिर भी साहस बनाए रखा व तिरंगा लहरा दिया। माहेश्वरी सोजत के माहेश्वरियों के बास के मूल निवासी है। अब माहेश्वरी परिवार सहित पिछले लंबे समय से मुंबई में ही रहता है। हालांकि उसका बचपन सोजत में ही बीता है। माहेश्वरी को 20 मई को तिब्बत-माउंट एसोसिएशन ऑटो नॉमस रीजन ऑफ द प्योप्स रिपब्लिक चाइना की आेर से एवरेस्ट पर फतेह हासिल करने का प्रमाण पत्र भी दिया गया।
नेपाल व कनाड़ा में ली स्पेशल ट्रेनिंग : वैंकटेश को बचपन से ही माउंट ट्रैकिंग (पर्वतारोहण) का शौक था। माहेश्वरी कनाड़ा गए तो वहां उनका ट्रेनिंग के दौरान यह हुनर निखरता ही गया। इसके बाद उन्होंने हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का संकल्प लिया। लेकिन उम्र 46 साल हो जाने के कारण नेपाल में इन्हें अधिकारिक रूप से सरकारी नियमानुसार एवरेस्ट की खास कोचिंग के लिए मना कर दिया गया। बाद में इन्होंने अपनी जिम्मेदारी पर निजी कॉलेजों में प्राइवेट ट्यूशन के जरिए इतनी उंचाई पर चढ़ने के तरीके सीखे। वह खुद भी एक कंपनी में वाइस प्रेसीडेंट पद पर कार्यरत है। जहां पर लम्बी ट्रेनिंग के लिए छुट्टी मिलना मुश्किल था। ट्रेनिंग के बाद वे तिब्बत पहुंचे तथा 10 साथियों के ग्रुप में एक मात्र भारतीय की भूमिका निभाते हुए अपना कारवां शुरू किया।
बीते 16 मई को उन्होंने एवरेस्ट के शिखर पर झंडा लहरा दिया।
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