सालभर पहले ही चेता दिया था सरकार को, गंभीरता दिखाई होती तो विवाद नहीं बढ़ता
निर्मातासंजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती को लेकर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। जहां प्रदेश भर में इसे लेकर रैलियां और प्रदर्शन हो रहे हैं, वहीं पाली के राजपूत समाज में भी इसे लेकर विरोध मुखर हो रहा है। शनिवार को भास्कर कार्यालय में आयोजित टॉक शो में राजपूत समाज के युवाओं ने पद्मावती फिल्म के प्रदर्शन को रोकने की मांग उठाते हुए फिल्म में इतिहास से छेड़छाड़ को लेकर कड़े शब्दों में निंदा की। समाज के लोगों का कहना था कि केवल स्वयं के आर्थिक फायदे के लिए बहुत बड़े वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुंचाना ठीक नहीं है। इतिहास के साथ छेड़छाड़ करके कल कोई रावण और सीता के बारे में भी फिल्म बना देगा, ऐसा कतई बर्दाश्त नहीं होगा। अपनी बात रखते हुए राजपूत समाज ने सरकार से इस पर बैन लगाने का निर्णय करने का आग्रह किया।
सस्ती लोकप्रियता के लिए भावनाओं से खिलवाड़ नहीं
^सस्तीलोकप्रियता के लिए मनोरंजन के नाम पर कुछ भी पेश करना सिर्फ पेशेवर अंदाज है। पाठ्य पुस्तकों इतिहास में दर्शाए जीवन मूल्यों को मनोरंजन के अंदाज में पेश ही नहीं किया जाना चाहिए।
सांस्कृतिक परंपरा नहीं बने मनोरंजन का माध्यम
^संस्कृतिको जीवित रखने के हरसंभव प्रयास होने चाहिए। जौहर भी तत्कालीन सांस्कृतिक परंपरा रही है। इसे सही अर्थों में ही दर्शा जाए। मनोरंजन का माध्यम बनाना असहनीय है।
प्रेरणा स्रोतों के साथ ऐसा नहीं हो
^फिल्मके प्रदर्शन के समय यह दिखा देना कि दिखाए जा रहे पात्र काल्पनिक है और फिल्म के इतिहास से जुड़े पात्रों काे तोड़ मरोड़कर दिखाया जाए, ये सर्वथा अनुचित है। प्रेरणा स्रोतों के साथ ऐसा नहीं हो।
प्रामाणिकता के लिए प्री सेंसर बोर्ड हो
^फिल्मके लिए सेंसर बोर्ड से भी पहले प्री सेंसर बोर्ड होना चाहिए जो कि पटकथा को ही प्रामाणिकता का सर्टिफिकेट दे। जब परीक्षाओं में विभिन्न चरण होते हैं तो इतने बड़े माध्यम के लिए भी ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए।
श्रद्धा से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा
^पद्मावतीहमारे जीवन मूल्यों की आदर्श है। वे हमारी प्रेरणा स्रोत है। उनके जीवन का फिल्मांकन यदि श्रद्धा से हटकर किया जाएगा तो सहन नहीं किया जाएगा। इस दिशा में प्रभावी कार्रवाई जरूरी है।
^फिल्मेंसमाज का आइना होती है इसलिए इसमें वर्णित तथ्यों को स्पष्टता के साथ दर्शाना चाहिए। इतिहास में तोड़फोड़ की बजाय तथ्यों की यथास्थिति वास्तविक प्रस्तुति होनी चाहिए।
यूथ को गलत संदेश देगी इतिहास की गलत प्रस्तुति
^फिल्मप्रचार प्रसार ज्ञान का सशक्त माध्यम है। शिक्षा आज ब्लैक बोर्ड और बैग से हटकर टेबलेट और लैपटाप तक पहुंच गई है। ऐसे में सिनेमा की भूमिका बढ़ जाती है। इतिहास की गलत प्रस्तुति यूथ को गलत संदेश देगी।
^सिनेमाके माध्यम से दीमक का काम कर रही फिल्मों पर नियंत्रण नैतिक जिम्मेदारी है। जनहित के लिए स्वाभिमान तक दांव पर लगाने वाले विषय को सही तौर पर दिखाया जाए।
गलत फिल्मांकन इतिहास के आदर्शों से खिलवाड़
^पद्मावतीने मान सम्मान स्वाभिमान के लिए जौहर किया था। इस विराट व्यक्तित्व के जीवन को सपने के दर्शन के नाम पर गलत फिल्मांकन इतिहास के आदर्शों से खिलवाड़ है। सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
इतिहासकारों को प्राथमिकता मिले
^भारतीयफिल्मों के लेखक के स्रोत पारंपरिक ही रखे जाए। विदेशी लेखकों काे महत्व देने की बजाय इतिहास जैसे विषय को गंभीर शोध के साथ तथ्य पेश किए जाए। इसके लिए युवाओं की जागरूकता भी जरूरी है।
कल्पना के रूप में तथ्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं
^राजपुतानाका इतिहास समृद्ध और संपन्न रहा है। फिल्मों के माध्यम से भी कल्पना के रूप में इसके तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश नहीं किया जाना चाहिए। इसका पुरजोर विरोध जरूरी है।
फिल्म स्क्रिप्ट की प्रामाणिकता के लिए समिति बने
^राज्यमें इतिहासकारों की एक समिति बनाई जाए जो कि टीवी और फिल्मों के लिए चयनित स्क्रिप्ट की प्रामाणिकता के लिए तथ्य जुटाए। समय रहते ये कदम उठाना जरूरी है।