इस मंदिर की मूर्ति सीरवी (चौधरी ) समाज के भक्त अपने कंधे पर उठाकर लाये व् आगे ले जा रहे थे लघुशंका के कारण प्रात: ३ बजे सोजत में स्थित एक पहाड़ी पर नीम के पेड़ के निचे रखा गया कुछ समय बाद जब मूर्ति को उठाना चाहा तो मूर्ति उठी नही क्योकि ऐसा माना जाता हे की भक्त व् श्री हनुमान जी के बीच यह शर्त थी की मूर्ति को कही भी रखे जाने पर वह उसी स्थान पर स्थापित हो जाएगी तभी से यह मूर्ति यह स्थापित हैं |
सीरवी भक्त ने अपने पूर्ण जीवनकाल में यहा पूजा अर्चना की व् उसके बाद राजा अजीत सिंह जी के राज में एस मंदिर की पूजा राजदरबार के चामुंडा माता के पुजारियों को इसकी पूजा सोपी गयी आज भी वही पुजारी यह पूजा करते हैं|
हर मंगलवार को भक्तो की भीड़ यहा दर्शन करने आती हे
आज भी माघ एवं वैशाख मास शुक्ल पक्ष के मंगलवार एवं शनिवार को शिरवी समाज के जातरू यहा आते हे व् जात जडुला करके चूरमा की प्रसादी एवं तिल्ली का तेल चढाते हैं |
हनुमान जयंती का यहा विशाल मेला लगता हे जिसमे बजरंग दल के कार्यकर्ता द्वरा कई करतब दिखाए जाते हे ढोल नगाड़े व् DJ के साथ रेली निकाली जाती हे |